Golden Urn : कलश में से दलाई लामा, क्या है वह परंपरा जिसका चीन हवाला दे रहा?
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गोल्डन अर्न (Golden Urn) यानी सोने की कलश वाली प्रक्रिया — नाम सुनने में धार्मिक लगता है, पर असल में यह तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के चयन से जुड़ी एक विवादित चीनी परंपरा है। जब दलाई लामा (Dalai Lama) ने यह कहा कि उनके उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार सिर्फ Gaden Phodrang Trust को होगा, तभी से चीन ने फिर से Golden Urn Tradition की बात छेड़ दी।
Golden Urn Tradition एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे चीन ने 18वीं सदी में लागू किया था, ताकि तिब्बती धर्मगुरुओं जैसे दलाई लामा और पंचेन लामा के पुनर्जन्म की पहचान पर बीजिंग का नियंत्रण बना रहे।
इसमें होता यह है कि पुनर्जन्म के संभावित बच्चों के नाम कागज पर लिखकर एक कलश (Urn) में डाले जाते हैं। फिर धार्मिक समारोह में उस कलश से लॉटरी की तरह एक नाम निकाला जाता है।
जो नाम निकलता है, उसे ही नए दलाई लामा या पंचेन लामा के रूप में स्वीकार किया जाता है। इस प्रक्रिया को चीन 'पारदर्शिता और निष्पक्षता' का नाम देता है, जबकि तिब्बती इसे एक राजनीतिक दखल मानते हैं।
Golden Urn परंपरा की शुरुआत कब और क्यों हुई?
1793 में जब चीन की चिंग वंश (Qing Dynasty) का तिब्बत पर प्रभाव था, तब उन्होंने 29 नियम लागू किए, जिनमें एक नियम था - गोल्डन अर्न (Golden Urn) से लामाओं का चयन।
कहा गया कि इससे तिब्बती बौद्ध धर्म में हो रही 'गड़बड़ियों' को रोका जा सकेगा और सम्राट का आदेश अंतिम माना जाएगा। लेकिन सच यह है कि चीन इसके जरिए तिब्बती धार्मिक सत्ता पर पकड़ बनाना चाहता था।
क्या मौजूदा दलाई लामा Golden Urn से चुने गए हैं?
13वें और 14वें दलाई लामा, जिन्हें पूरी तिब्बती जनता मान्यता देती है, गोल्डन अर्न से नहीं चुने गए थे। उनके चयन में परंपरागत तिब्बती मान्यताओं जैसे दिव्य संकेत, सपनों और लामा विद्वानों की खोज प्रक्रिया का पालन हुआ था।
चीन का यह दावा कि गोल्डन अर्न से ही दलाई लामा को चुनना चाहिए, ऐतिहासिक सच्चाई से मेल नहीं खाता।
आज यह परंपरा फिर से चर्चा में है, क्योंकि जैसे-जैसे दलाई लामा (Dalai Lama) के उत्तराधिकारी की चर्चा तेज हो रही है, चीन ने दोबारा गोल्डन अर्न प्रणाली का हवाला देना शुरू कर दिया है।
चीन का कहना है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी तभी वैध होगा जब उसका चयन गोल्डन अर्न प्रक्रिया और बीजिंग की मंजूरी से होगा। दलाई लामा ने इसका कड़ा विरोध करते हुए साफ कहा है कि उत्तराधिकारी की पहचान तिब्बती परंपरा और Gaden Phodrang Trust द्वारा होगी।
गोल्डन अर्न (Golden Urn) परंपरा को चीन धर्म की आड़ में इस्तेमाल करता है, लेकिन उसका असली मकसद है तिब्बती पहचान और स्वतंत्रता को नियंत्रित करना। दलाई लामा (Dalai Lama) की वैधता सिर्फ बीजिंग के आदेश से तय नहीं होती - वह आती है आस्था, परंपरा और लोगों के विश्वास से।
जैसे-जैसे दलाई लामा के उत्तराधिकारी की घड़ी नजदीक आ रही है, यह साफ होता जा रहा है कि गोल्डन अर्न बनाम धर्म परंपरा का यह संघर्ष आस्था और अधिकार की सबसे बड़ी लड़ाई बन सकता है।
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